Poems

पार्क और शाम के समाचार और दुनिया की सबसे ऊँची छत

रोशनी कम हो रही है

कहीं और रोशनी हो रही है
हम शाम के ऊपर कर रहे हैं विचार
टहलते हुए पार्क के पेड़ों के बीच
जो खड़े हैं हाथ बाँधे गुमसुम,
कहीं बारिश हुई
ठंड हो गई यहाँ
हवा आते हुए साथ ले आई
थकी हुई आवाज़ें,
चलो लौट चलें
अँधेरा होने से पहले
रुककर हमने देखा रोशनी को
आकाश पर मिटते
काश हम एक ऊँची मीनार होते
देख पाते यह जाती कहाँ है आखिर
पर पोंछता हुआ इसे यह किसका हाथ है
 
आज शाम के मुख्य समाचार
आवंटित प्रसारण समय में
दुनिया अपना थका हुआ मुँह धोएगी
बिना महाकाव्य के समाप्त हो जाएगी सदी
हम इन दिनों कोलाहल को सन्नाटे के दिन बिताएँगे,
एक समय था जब
दिन का उगना
शाम का डूबना कुछ सोचने की बात थी
वह पाषाण काल था जैसे कुछ देर पहले ही
 
सपने में मैंने देखा हम दुनिया की सबसे ऊँची छत पर थे
फिर भी तारे बहुत दूर थे
और अंतहीन था अँधेरा
 
 
(जैसे जनम कोई दरवाजा, 1997)