Poems

कुछ कहना

कुछ कहना क्या उचित है अपने बारे में,

इतना ही पर्याप्त है
 
नीली आँखों वाली काले रंग की चिड़िया हूँ
मेरे पंखों में सिमटी हैं सीमाएँ
मेरी उड़ान ने छुआ आकाश के रंग को
मैंने उचक कर देखा उसके परे अंधकार को भी
सूखती हुई नदियों और दौड़ते रेगिस्तान का पीछा मैंने किया है
जलते हुए वनों में झुलसी हूँ मैं कभी,
बारिश में घुलते दुख को मैंने चूमा है,
मैंने देखा बाढ़ से घिरे पेड़ पर जनम देती स्त्री को,
कितनी ही बार बदला है मैंने इस देह को
हर बार मैं नीली आँखों वाली काली चिड़िया हूँ।
 
कठिन ढलानों पर चढ़ते छुपते
युद्धों से भागते लोग मुझे देख रुकते
सोचते वे नहीं हो सकते कभी
इतनी उँचाई पर इतनी दूर फिर भी मैं इतने पास उनके मन में,
लंबी लकीरों में उनके चेहरों की टूटते बनते हैं देश
वे खरीदते हैं नए ताले नई चाबियाँ अपने स्वर्ग के लिए,
क्या सोचा होगा बोअबदिल ने इज़ाबेला को अलामबरा की चाबियाँ सौंपते
बस धीमे से कहा उसने ''ये लो स्वर्ग की चाबियाँ"
 
यह अंतहीन उड़ान जिसमें न दिन है न रात
कभी डूबता और उगता है सूरज एक साथ
मेरी आँखों में बंद हैं देशांतर,
कवि के सपनों की डायरी पढ़ते
धुंध में खोकर गिर पड़ती हूँ कहीं
मिल जाती धरती के कणों में
जनमती फिर नीली आँखों वाली काली चिड़िया
 
कभी तीर अब बंदूकें तनी हैं जिस पर
डर नहीं है मुझे, पतझड़ के लाल रंग में घुल जाएगा मेरा रक्त,
 
किसी और प्रदेश से किसी और दिशा से फिर शुरू करूँगी उड़ान अपनी,
तुम्हारे ही शब्दों से गढ़ती जीवन को
मैं इस दुनिया की चीज़ नहीं हूँ
कुछ और कहना क्या उचित है अपने बारे में,
इतना ही पर्याप्त है
 
 
(इस छोर पर, 2003)